गुरुवार, 23 जुलाई 2009

चाहत

चाहत है एक हिमालय की
जिसमें तेरी प्रेम गंगा बहती हो
तमन्ना है एक आशियाने की जिसमें
तेरी चाहत बसती हो


तेरी बेवफाई में अनगिनत अश्क बह गए
तेरी वफ़ा की गोद में बठने को हम तरस गए
दर्द भरी आंखों से मोतियों से अश्क
बादलों की तरह बरस गए
बचा न नीर आंखों में
अब तो सिर्फ़ तेरे ख्वाब रह गए

न जाने तुम कब आओगे
हम तुम्हे कभी देख भी पाएंगे या नहीं
आंखों में थे जो मोतियों से आँसू
तेरे इन्तजार में लुट गए

वैसे तो ...इस दुनिया में कौन किस के लिए रोता है
पर ये तो थे बेकाबू आँसू
जो अनवरत आंखों से गिरते चले गए
जो थे पत्थर दिल वो भी पिंघलते चले गए .