शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

नजर का कहर

रो-रो कर कविताएँ लिखता रहा तेरी याद में
तुमसे मिलने की करता रहा फरियाद मैं
बैचेन धडकनें धड़कती रहीं
गर्म साँसें तड़पती रहीं
व्याकुल नजरें टिकी रही तेरी राह में

उन नजरों का क्या करें
जो चली गई हमें निहार कर
खुमारी मिटती नहीं तेरी नजर की
मिलते रहे हम तुम से ख़्वाब में
जमाने की क्या कहें
हम खुद ही रोते रहे तेरे इन्तजार में

हर साँस में लिखा है तेरा नाम
हर आवाज पर लिखा है तेरा पैगाम
कुदरत ने किया है ऐसा काम
कि हर आहट में छिपी है तेरी पदचाप
हमें तुम्हारा इन्तजार रहेगा
कब आओगे आप .