बुधवार, 4 नवंबर 2009

मैं टहनी हूँ

टहनियों से पत्ते अलग होते रहते हैं
कुछ हवाओं से
तो कुछ पक कर गिर जाते हैं
दुनिया में लोग आते हैं
और चले जाते हैं
कुछ वक्त से चले जाते हैं
तो कुछ बेवक्त जाते हैं

दोस्त बनते हैं
बिगड़ते हैं
कुछ चले जाते हैं
कुछ नए आ जाते हैं
दुनिया एक पर खत्म नहीं होती
एक जाता है
तो दूसरा आ जाता है

मुझे गिरे पत्तों पर आँसू बहाने की आदत नहीं
हालाँकि मैं उनको बचाने की पूरी कोशिश करता हूँ
पर कुछ के गिरने के बाद
कुछ नई कोंपलें प्रस्फुटित हो जाती हैं
जो कल के नए पत्ते होंगी .