गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

महाभारत-कर्मयोग

उठो जागो !
वीर धुरंधर ओजस्वी
आकुल हो क्यों 
व्याकुल हो क्यों 
उठा गांडीव 
मचा तांडव 
पड़ा क्यों पीर पकड़ के
 ठोक दे सीना तीर पकड़ के 

धीरज धर ओ वीर तूँ 
क्यों अधीर हुआ है तेरा मन 

सागर सा उमड़ा ह्रदय 
अब किसे डूबोयेगा 

खड़े हैं कौरव 
युद्ध को तुझे ललकार रहे 

क्या निज भ्राता पर ही 
बाण चलाऊंगा 
मार के वंशज अपना 
क्या सुखी मैं हो पाउँगा 

तेरा कौन है
किसका है तूँ प्यारे 
सब जीव न्यारे-न्यारे 
हर जन्म संगम न्यारे-न्यारे 
पाताल कभी तेरा था 
धरती कभी मेरी थी 
क्या पता तुझे -
 जाने किसका था आसमान 

तू देख चूका है दुनिया को 
दानव सी दहाड़ सुन के 
चीत्कार उठी है कोमलता 

विश्व विज्ञान तुम्हे सिखाऊँ 
उठ ओ उठ वीर तेजस्वी 
क्यों पड़ा मंदिम-
मुख-मंडल तेज ओजस्वी 

भाइयों का भार उठेगा ना मेरे कंधों पर 

तो ये सच है कि तूँ जायेगा उनके कन्धों पर 
हुंकार उठा है मंडल 
अब तूँ सोच रहा है जाऊं मैं 
आनन्-फानन में कानन 
ले हाथ कमंडल। ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,लगातार