कुछ बेगाने हैं
उनसे शिकवा क्या करें
कुछ नादां हैं
उनसे शिकायत क्या करें
हमें उम्मीद नहीं उनसे मोहब्बत की
तो इनायत क्या करें
अगर जालीम है ज़माना
तो सराफत क्या करें
हम तो योंही लुटाते रहे मोहब्बत उनपर
अगर वो समझे इसे बेबसी हमारी
तो मोहब्बत क्या करें
हरपल योंही लुढ़कती है दुनिया
अपने ही बदल जाते हैं
तो बेगाने क्या करें
हर उम्मीद के साथ
एक आवाज आती है दिल के टूटने की
तो अफसाने क्या करें
सागर में तैर जाते हैं पत्थर भी
अगर डूब जाये इन्सान
तो सागर क्या करे .