सोमवार, 12 सितंबर 2011

शिकायत

कुछ बेगाने हैं
उनसे शिकवा क्या करें
कुछ नादां हैं
उनसे शिकायत क्या करें
हमें उम्मीद नहीं उनसे मोहब्बत की
तो इनायत क्या करें

अगर जालीम है ज़माना
तो सराफत क्या करें

हम तो योंही लुटाते रहे मोहब्बत उनपर
अगर वो समझे इसे बेबसी हमारी
तो मोहब्बत क्या करें
हरपल योंही लुढ़कती है दुनिया
अपने ही बदल जाते हैं
तो बेगाने क्या करें

हर उम्मीद के साथ
एक आवाज आती है दिल के टूटने की
तो अफसाने क्या करें
सागर में तैर जाते हैं पत्थर भी
अगर डूब जाये इन्सान
तो सागर क्या करे .

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