उन निगाहों से क्या घबराना
जो झुकती नहीं सम्मान में
जो झुकती नहीं प्यार से।
इस जहाँ में निगाहें बदनाम
भी होती हैं कत्ल के इल्ज़ाम में
निगाहें शिकारी होती हैं
शिकार भी निगाहें होती हैं।
निगाहों से निगाहें मिलाकर
निगाहों से करना तकरार
निगाहों ही निगाहों में
होती निगाहें अंगीकार।
निगाहें उठती हैं
निगाहें गिरती हैं
निगाहों से उठते हैं
निगाहों से गिरते हैं लोग
निगाहों से होता इंकार है
निगाहों से होता इकरार।
निरीह, निर्दय, निसंग होती हैं निगाहें
निर्मोह, निर्भय,निर्निमेष भी होती हैं निगाहें।
गुमशुम निस्वर निगाहें
खालिश अभिव्यक्त हैं निगाहें।
निगाहों से बनते बिगड़ते निबंध।
स्थिर भी हैं निगाहें
चंचल भी हैं निगाहें
चमत्कारी भी होती हैं निगाहें
करिश्मा करती हैं, कहर भी ढा़हती हैं निगाहें
कातर भी होती हैं निगाहें।
निगाहों में जलवा है
निगाहों से जलते हैं लोग।
निगाहों से तड़पते,मचलते हैं तन-मन।
निगाहों में आते हैं
निगाहों से ओझल होते हैं लोग।।