क्यों कर रहे उस रावण को कलंकित?
जो था शिव भक्त,जो था विद्वान
किए जिसने भक्ति में दस शीश कुर्बान।
किया सीताहरण घमण्ड से
तो पापमुक्त हुआ मृत्यु दंड से
आज तो हैं पापी बड़े रावण से
बिना भक्ति, बिना ज्ञान के।
फिर भी हम कितने अंधे हैं
मनाते दशहरा
जलाते पुतला रावण का
दुष्ट जान के।
कलयुग में दुष्ट पहनते हैं चोला राम का
काले करते धंधे हैं।
खून चूस गरीबों का
खेल बताते नसीबों का।
एेसा भी क्या कसूर था उस रावण का
आज तो रेप-मर्डर होते खुलेआम
खुले घूम रहे अपराधी आराम से।
कह सके ना उनको कोई कुछ
करते हैं कर्म तुच्छ से तुच्छ।
अब घूम रहे रावण अपार
कितने राम लेंगे अवतार।
क्यों कर रहे उस रावण को कलंकित
आज तो सुरक्षित नहीं
अबोध बच्ची और पड़ौसी की नारियाँ
उस रावण के घर तो पवित्र थी शत्रु की भार्या
क्यों कर रहे उस रावण को कलंकित?
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