शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

आज मुझे एतराज़ नहीं

आज मुझे एतराज़ नहीं
वृद्ध होने से
ना ही कोई भय
वृध्दावस्था आज मुझे स्वर्ग के द्वार पर स्वागत में खड़ी अप्सरा नज़र आती है।

बुढ़ापे का भी एक अपना ही मजा है
किसी कोने में बैठकर बीते जीवन का मूल्यांकन करने का
बचपन, जवानी की बातें याद करने का।

पोते-पोतियों और नातियों को
आंगन में खेलते देखना
नई पीढियों का उल्लास देखना
याद करना अपनी मौज को
अपने अतीत के अवलोकन का भी
एक अपना ही मजा है।

दर्शकदीर्घा में बैठे खिलाड़ी
सभी कर्मों से निवर्त्त
दृष्टा मात्र
दिनभर की थकान के बाद
संध्या होने पर
खेत को निहारती खुशनुमा आंखें
और घर लौटने से पहले का आराम है बुढापा।

जिसने खेत में काम नहीं किया
और संध्या हो जाए तो माथे पर
चिंता की लकीरें उभरना स्वभाविक है लेकिन जो जी-जान से काम करके
थक चुका है
उसके लिए यह संध्या
किसी वरदान से कम नहीं।

आज मुझे एतराज़ नहीं
वृद्ध होने से
ना ही कोई भय
वृध्दावस्था आज मुझे स्वर्ग के द्वार पर स्वागत में खड़ी अप्सरा नज़र आती है।

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