शनिवार, 19 सितंबर 2009

दुनिया का जीवन

उफ़! तौबा ये दुनिया
कितने गूढ-जटिल
रहस्यों से अटी पड़ी है
कितना स्वार्थ-प्रपंच है
कितना सीधापन

मकड़-जाल सी जिन्दगी
चलती-चलती गूँथ जाती है
मुड़ जाती है नई दिशा में
कोटि-कोटि रंग दुनिया के
निर्भर करती है द्रष्टा के नजरिये पर

चाहत की चमक है कहीं
घ्रणा का घोर तमस छाया है कहीं
बेवफाई से टूटा मन गमगीन
कहीं उत्साह से लबालब नवजीवन
खौफ रहित ,गमहीन
प्रमुखका परचम लहराते अमीर यहीं
दरिद्रता में डूबे दीन भी यहीं
किसी का जीवन
लहराती बगिया है
तो किसी का सुखा झार-झंखार
फूलों से लथपथ है किसी की बाहें
तो काँटों से भरी हैं किसी की राहें
किसी के भाग्य का सूरज चमक रहा है
तो किसी के फीके पड़े हैं सितारे
सारे शहर में है तन्हाई
प्रेम की तलास में भटकता जीव
समझ नहीं पा रहा
क्या सही,क्या गलत .

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