सोमवार, 19 अक्तूबर 2009

भविष्य भारत का

लो !ये पड़ा है बिखरा
भविष्य भारत का
कच्ची बस्ती
व्यस्त सड़कों के
किनारों ठहरे पर
रहा है मूंगफली,अख़बार बेच
थामे हैं कटोरा करों में मलिन शेष

लो !ये तल रहा हैं भुजिये
भविष्य भारत का
गर्मागर्म झर्र से
हाथों सुकुमार से
ला रहा हैं, परोस नाश्ता,चाय ऊपर मेज
मरा रहा है पौचे सेठ ,शीघ्र भेज

लो !ये तले आसमान गया लुढक
भविष्य भारत का
किंचित भूखा,किंचित नंगा
बनी हैं बिस्तर सड़कें
क्या जाएगा पढने उठ तड्के?

लो !ये नाक-भौंह ली चढा
वर्ग संभ्रात ने
देख भविष्य भारत का
लो !आज हो गया उपेक्षित
भविष्य भारत का .

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें