सोमवार, 19 अक्तूबर 2009

वो कब मिलेगी

आज अचानक ही
किसी हसीना से आँखें मिल गई
मिली ऐसी कि
कुछ देर के लिए ठहर गई
आँखें न जाने क्या बतियाई
कि कुछ देर में ही अपनापन हो गया

वो चले गए
हम वहीं देखते रह गए
वो वापस हमारे पास आए
कुछ पल ठहरे
हम फ़िर भी कुछ न बोल पाए
और चले आए

जब उनका अपनापन याद आता है
तो रोना आता है
न जाने वो कहाँ चली गई
हमें गम प्यारा सा दे गई
कोई हमारा होना चाहता था
फ़िर भी न हो पाया .

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