शनिवार, 22 अगस्त 2009

तेरी याद में

हरपल आती है तेरी याद
फरियाद करते है खुदा से
किसी को न आए ऐसी जालिम याद

करवटों में गुजर जाती है,
ख्वाबों में कट जाती है रात
हर ख्वाब में तुमसे ही
होती है मुलाकात

जहन में सागर उमड़ रहा है,
तेरी यादों का
सिलसिला चलता रहता है,
कसमों और वादों का
सो नहीं पाते हैं
यों ही गुजर जाती हैं रात

सुबह तक सलवटें पड़ जाती हैं-
बिस्तर,दिल और आखों तले.
जब कभी गाता हैं कोई पपीहा
तेरी याद में जल उठते हैं दिलजले

तेरा खिलखिलाकर हँसना
शर्माकर मुस्कुराना
और खोजना नाराज होने का बहाना
एक से बढकर एक कातिलाना हमले हैं
तेरी याद में ऐसे फिसले हैं कि
आज तक नहीं संभले हैं.

बुधवार, 19 अगस्त 2009

आपकी याद

दोष आपका नहीं
आपकी याद का है
जो बार-बार मेरे जहन में आती है
और मेरा ध्यान खिंच ले जाती है

पढ़ते -पढ़ते जाने कब
शब्द छूट जाते है
जब थोड़ा सम्भलता हूँ
ख़ुद को सिर्फ़ तेरी यादो में पाता हूँ

में जानता हूँ यह
अच्छा नहीं मेरे लिए
पर क्या करूँ
मेरा बस भी तो नहीं चलता
मुझे यह भी नहीं लगता
की ये सब बेकार है

पता नहीं क्या कारण है
कि हरपल मेरे सिने में
आपकी याद है .

अकेलापन

दूर -दूर तक कोई अपना नजर नही आता
वो ही बेगाना हो जाता है
जो अपना नजर आता है
किससे करें शिकायत
बेगानी नजर आती है सारी कायनात
क्या देखें सपने किसी के लिए
कहीं भी तो नजर नहीं आते अपने

जज्बात हमारे दिल के
पात्र हँसी के बन गए
अब तो अपने भी बेगाने हो गए
इस समझदारी के युग में
कहाँ रही है किमत दिल के अरमानों की
मुझे शिकायत है दिल से
करता है जो उम्मीद प्यार के अफसानों की .

रविवार, 16 अगस्त 2009

दिल के जख्म

जिन्हें सिंचा था फूल समझकर
वो कांटे निकले
थी आशा जिनसे वफ़ा की
वो बेवफा निकले

निकले तीर उनकी आस्तीन में
समझ रहे थे फूलों के गूच्छे जिनमें
कायनात काली नजर आ रही है
उम्मीद थी जहाँ किरणों की
वहाँ घनघोर निकले

प्यार हमारा उनके लिए
मासूमियत बन गया
जिनको चाहा उनके लिए
साधन बन गया

काश ! हम भी कर पाते वार
उनके दिलोदिमाग पर
तो आज निकलते न उनके पर
जिनको साया समझकर चलते थे
वो ही थे शिकारी
चले थे शिकार करने हमारा

जितना प्यार लुटाते गये हम
उतने ही वो जालिम होते गये
जितने मीठे होते गये हम
उतनी ही चींटियाँ करती रही शिकार हमारा
एक दिन सूखी गुड की भेली हो गये हम
बेसहारा ,बेबस ,बैचेन ,नीरस ,बेमोल से .

शनिवार, 1 अगस्त 2009

पहली पहली बातें

उनकी मीठी-मीठी बातों से
बनकर तैयार हो गया था
महल हमारी चाहत का
एक दिन ध्वस्त हो गया
उनकी ही एक फटकार से

उनके अंदाज -ऐ -बयाँ से
दमक उठी थी पौध फूलों की
दिल -ऐ -जमीं पर
उन्होंने तेवर क्या पलटे
उजर गयी वो पौध गुलिस्तान से

उनकी बातों की टौन पर
बज रहे थे हमारे दिल के साज
स्पंदन से दिल के हुआ अहसास हमें
कितना संभालकर रखने की चीज है दिल
फ़िर भी किसी से संभलता नहीं ये नाजुक दिल .