शनिवार, 1 अगस्त 2009

पहली पहली बातें

उनकी मीठी-मीठी बातों से
बनकर तैयार हो गया था
महल हमारी चाहत का
एक दिन ध्वस्त हो गया
उनकी ही एक फटकार से

उनके अंदाज -ऐ -बयाँ से
दमक उठी थी पौध फूलों की
दिल -ऐ -जमीं पर
उन्होंने तेवर क्या पलटे
उजर गयी वो पौध गुलिस्तान से

उनकी बातों की टौन पर
बज रहे थे हमारे दिल के साज
स्पंदन से दिल के हुआ अहसास हमें
कितना संभालकर रखने की चीज है दिल
फ़िर भी किसी से संभलता नहीं ये नाजुक दिल .

3 टिप्‍पणियां:

  1. is komal kavita ne man moh liya

    aapka haardik swaagat hai............

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  2. फ़िर भी किसी से संभलता नहीं ये नाजुक दिल .

    Kyonki ye dil hai sambhalta nahi....... lajawaab rachna ke saath aapka swagat hai.

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  3. आते ही धमाका. इतनी खूबसूरत नर्म-नाज़ुक सी कविता! ये लहजा, ये तेवर संजो कर रखना. अभी सफर लम्बा है. वैसे आरम्भ इतना जानदार है तो आगे की राह भी हरियाली से ओत-प्रोत होगी.शुभकामना.

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