बुधवार, 19 अगस्त 2009

अकेलापन

दूर -दूर तक कोई अपना नजर नही आता
वो ही बेगाना हो जाता है
जो अपना नजर आता है
किससे करें शिकायत
बेगानी नजर आती है सारी कायनात
क्या देखें सपने किसी के लिए
कहीं भी तो नजर नहीं आते अपने

जज्बात हमारे दिल के
पात्र हँसी के बन गए
अब तो अपने भी बेगाने हो गए
इस समझदारी के युग में
कहाँ रही है किमत दिल के अरमानों की
मुझे शिकायत है दिल से
करता है जो उम्मीद प्यार के अफसानों की .

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