बुधवार, 4 नवंबर 2009
मैं टहनी हूँ
कुछ हवाओं से
तो कुछ पक कर गिर जाते हैं
दुनिया में लोग आते हैं
और चले जाते हैं
कुछ वक्त से चले जाते हैं
तो कुछ बेवक्त जाते हैं
दोस्त बनते हैं
बिगड़ते हैं
कुछ चले जाते हैं
कुछ नए आ जाते हैं
दुनिया एक पर खत्म नहीं होती
एक जाता है
तो दूसरा आ जाता है
मुझे गिरे पत्तों पर आँसू बहाने की आदत नहीं
हालाँकि मैं उनको बचाने की पूरी कोशिश करता हूँ
पर कुछ के गिरने के बाद
कुछ नई कोंपलें प्रस्फुटित हो जाती हैं
जो कल के नए पत्ते होंगी .
सोमवार, 19 अक्तूबर 2009
वो कब मिलेगी
किसी हसीना से आँखें मिल गई
मिली ऐसी कि
कुछ देर के लिए ठहर गई
आँखें न जाने क्या बतियाई
कि कुछ देर में ही अपनापन हो गया
वो चले गए
हम वहीं देखते रह गए
वो वापस हमारे पास आए
कुछ पल ठहरे
हम फ़िर भी कुछ न बोल पाए
और चले आए
जब उनका अपनापन याद आता है
तो रोना आता है
न जाने वो कहाँ चली गई
हमें गम प्यारा सा दे गई
कोई हमारा होना चाहता था
फ़िर भी न हो पाया .
भविष्य भारत का
भविष्य भारत का
कच्ची बस्ती
व्यस्त सड़कों के
किनारों ठहरे पर
रहा है मूंगफली,अख़बार बेच
थामे हैं कटोरा करों में मलिन शेष
लो !ये तल रहा हैं भुजिये
भविष्य भारत का
गर्मागर्म झर्र से
हाथों सुकुमार से
ला रहा हैं, परोस नाश्ता,चाय ऊपर मेज
मरा रहा है पौचे सेठ ,शीघ्र भेज
लो !ये तले आसमान गया लुढक
भविष्य भारत का
किंचित भूखा,किंचित नंगा
बनी हैं बिस्तर सड़कें
क्या जाएगा पढने उठ तड्के?
लो !ये नाक-भौंह ली चढा
वर्ग संभ्रात ने
देख भविष्य भारत का
लो !आज हो गया उपेक्षित
भविष्य भारत का .
सोमवार, 12 अक्तूबर 2009
संभावना सफलता की
बन गया सोना
कुंदन हुआ तपकर आग में
माना कि पारस संपर्क में
लोहा बन गया सोना
पर गुण यह लोहे में होता है
कि बन जाए सोना,
बनना नहीं हीरे-मोती
कंकर-पत्थर के भाग में
लगाओ कोई भी जंतर-मंतर
या रखो पारस संपर्क में .
गुरुवार, 24 सितंबर 2009
क्रांति
सदियों से,आदि काल से
पद-दलित हो जीते हैं
बोझ चराचर का सहते हैं
बनाई हैं कर छिनभिन हमें
जीवों ने कन्दराएँ
फोड़ सर रखी नींव
प्रसादों की मानवों ने
चीर के सीना हैं फसलें लहलाई
फ़िर भी सत्ता अपनी खाक कहलाई
सोच यह उद्वेलित हुए रज- कण
बवंडर बन झकझोरा है चराचर को
चढ़ गए आसमान
वृक्षों को है धकेला
झुक गए वो बच गए
टक्कराए वो टूट गए
फड़फड़ा उठी खिड़कियाँ प्रसादों की
गवाक्ष गई मूंद
घोट दिया गला आसमान का
बिखरा पड़ा है खून ही खून .
शनिवार, 19 सितंबर 2009
दुनिया का जीवन
कितने गूढ-जटिल
रहस्यों से अटी पड़ी है
कितना स्वार्थ-प्रपंच है
कितना सीधापन
मकड़-जाल सी जिन्दगी
चलती-चलती गूँथ जाती है
मुड़ जाती है नई दिशा में
कोटि-कोटि रंग दुनिया के
निर्भर करती है द्रष्टा के नजरिये पर
चाहत की चमक है कहीं
घ्रणा का घोर तमस छाया है कहीं
बेवफाई से टूटा मन गमगीन
कहीं उत्साह से लबालब नवजीवन
खौफ रहित ,गमहीन
शनिवार, 5 सितंबर 2009
मेरे गाँव
सूने खेतों में खेलती तलिया
रास्ते की छपाछप
और मिट्टी की वो गंध
बहुत याद आती है
धरती के झरोखों से
झांकती बाजरे की नई कोपलें
और वो मन्दिम हरियाली
सूरज ढलने पर
सिहरन ठंडी हवाओं की
बहुत याद आती है
चिलकती धूप में तपते मार्ग
कोमलता बाजरे के सिट्टों की
उमस में घुली बाजरे की वो गंध
बहुत याद आती है
गर्मी के महीनों में
गली-गली में
पसरा पड़ा सन्नाटा
खामोश झोंपड़ियों के आँगन
निर्जन खेत
और वो पेडो की छाँव में दुबके
पशु-पक्षी बहुत याद आते हैं
लू का समंदर डूबोता हुआ
गाँव-ढाणी-खेत
लहरा रहा हैं
ऐसे में सर पर मंदासी मांडे
खेत की ओर बढते वो किसान
बहुत याद आते हैं
हरशाम पक्षियों का कोलाहल
के झुंड पेड़ों पर
तालाब को घेरे भेड़-बकरियाँ बछडों की ओर दोड़ना भेंसों और गायों का वो चद्ती रात और
सबका खुले आसमान तले सो जाना -गाय की जुबाली की आवाज
भेड़ों की छींकें,ऊँटों की लुतलुती ये सब बहुत याद आते हैं
सर्दी के वो सुहाने दिन
धूप का खिलना
और सूरज का छिपना
धुंध और कोहरा
सुबह शाम सर्दी का पहरा
बहुत याद आता हैं
सरसों की लहलाती फसल और सुगों की टाँय-टाँय ताप अलावते बुडे-बुजुर्ग और गोद में छिपे बच्चे बहुत याद आते हैं
रात को ताऊ की पोली में हुक्के की आवाज लोरी सुना रही है-गुड्ड-गुड्ड सबको प्यारी नींद सुला रही है बहुत याद आ रही है .
शनिवार, 22 अगस्त 2009
तेरी याद में
फरियाद करते है खुदा से
किसी को न आए ऐसी जालिम याद
करवटों में गुजर जाती है,
ख्वाबों में कट जाती है रात
हर ख्वाब में तुमसे ही
होती है मुलाकात
जहन में सागर उमड़ रहा है,
तेरी यादों का
सिलसिला चलता रहता है,
कसमों और वादों का
सो नहीं पाते हैं
यों ही गुजर जाती हैं रात
सुबह तक सलवटें पड़ जाती हैं-
बिस्तर,दिल और आखों तले.
जब कभी गाता हैं कोई पपीहा
तेरी याद में जल उठते हैं दिलजले
तेरा खिलखिलाकर हँसना
शर्माकर मुस्कुराना
और खोजना नाराज होने का बहाना
एक से बढकर एक कातिलाना हमले हैं
तेरी याद में ऐसे फिसले हैं कि
आज तक नहीं संभले हैं.
बुधवार, 19 अगस्त 2009
आपकी याद
आपकी याद का है
जो बार-बार मेरे जहन में आती है
और मेरा ध्यान खिंच ले जाती है
पढ़ते -पढ़ते न जाने कब
शब्द छूट जाते है
जब थोड़ा सम्भलता हूँ
ख़ुद को सिर्फ़ तेरी यादो में पाता हूँ
में जानता हूँ यह
अच्छा नहीं मेरे लिए
पर क्या करूँ
मेरा बस भी तो नहीं चलता
मुझे यह भी नहीं लगता
की ये सब बेकार है
पता नहीं क्या कारण है
कि हरपल मेरे सिने में
आपकी याद है .
अकेलापन
वो ही बेगाना हो जाता है
जो अपना नजर आता है
किससे करें शिकायत
बेगानी नजर आती है सारी कायनात
क्या देखें सपने किसी के लिए
कहीं भी तो नजर नहीं आते अपने
जज्बात हमारे दिल के
पात्र हँसी के बन गए
अब तो अपने भी बेगाने हो गए
इस समझदारी के युग में
कहाँ रही है किमत दिल के अरमानों की
मुझे शिकायत है दिल से
करता है जो उम्मीद प्यार के अफसानों की .
रविवार, 16 अगस्त 2009
दिल के जख्म
वो कांटे निकले
थी आशा जिनसे वफ़ा की
वो बेवफा निकले
निकले तीर उनकी आस्तीन में
समझ रहे थे फूलों के गूच्छे जिनमें
कायनात काली नजर आ रही है
उम्मीद थी जहाँ किरणों की
वहाँ घनघोर निकले
प्यार हमारा उनके लिए
मासूमियत बन गया
जिनको चाहा उनके लिए
साधन बन गया
काश ! हम भी कर पाते वार
उनके दिलोदिमाग पर
तो आज निकलते न उनके पर
जिनको साया समझकर चलते थे
वो ही थे शिकारी
चले थे शिकार करने हमारा
जितना प्यार लुटाते गये हम
उतने ही वो जालिम होते गये
जितने मीठे होते गये हम
उतनी ही चींटियाँ करती रही शिकार हमारा
एक दिन सूखी गुड की भेली हो गये हम
बेसहारा ,बेबस ,बैचेन ,नीरस ,बेमोल से .
शनिवार, 1 अगस्त 2009
पहली पहली बातें
बनकर तैयार हो गया था
महल हमारी चाहत का
एक दिन ध्वस्त हो गया
उनकी ही एक फटकार से
उनके अंदाज -ऐ -बयाँ से
दमक उठी थी पौध फूलों की
दिल -ऐ -जमीं पर
उन्होंने तेवर क्या पलटे
उजर गयी वो पौध गुलिस्तान से
उनकी बातों की टौन पर
बज रहे थे हमारे दिल के साज
स्पंदन से दिल के हुआ अहसास हमें
कितना संभालकर रखने की चीज है दिल
फ़िर भी किसी से संभलता नहीं ये नाजुक दिल .
गुरुवार, 23 जुलाई 2009
चाहत
जिसमें तेरी प्रेम गंगा बहती हो
तमन्ना है एक आशियाने की जिसमें
तेरी चाहत बसती हो
तेरी बेवफाई में अनगिनत अश्क बह गए
तेरी वफ़ा की गोद में बठने को हम तरस गए
दर्द भरी आंखों से मोतियों से अश्क
बादलों की तरह बरस गए
बचा न नीर आंखों में
अब तो सिर्फ़ तेरे ख्वाब रह गए
न जाने तुम कब आओगे
हम तुम्हे कभी देख भी पाएंगे या नहीं
आंखों में थे जो मोतियों से आँसू
तेरे इन्तजार में लुट गए
वैसे तो ...इस दुनिया में कौन किस के लिए रोता है
पर ये तो थे बेकाबू आँसू
जो अनवरत आंखों से गिरते चले गए
जो थे पत्थर दिल वो भी पिंघलते चले गए .